हजारीमल-सदूकंवर की सन्तानें
भैंरुदान | Bherudan Chhalani |
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भैंरुदान छलानी छोगमल मदनकंवर के पौत्र तथा हजारीमल-सदूकंवर के सबसे बड़े पुत्र थे। आपका जन्म दिनांक 29 नवम्बर 1909 के असम के तेजपूर शहर में हुआ। आपका बचपन वहीं बीता। साधारण शिक्षा भी वहीं पर हुई। कक्षाओं के हिसाब से आपकी शिक्षा नहीं हुई। पर शिक्षा के हिसाब से आप अच्छे बढ़े-लिखें थे। आपके हिन्दी (देवनागरी) के अक्षर सुन्दर थे कि देखकर हर कोई दंग रह जाता। तुलसीकृत रामायण तो आपके कंठस्थ ही थी। आपका शिक्षा से पूरा अनुराग था। स्वयं की 50 वर्ष की उम्र में भी अग्रेजी का अच्छा ज्ञान प्राप्त करने की आपकी इच्छा रही और इस हेतु कई दिनों तक अपने पुत्रों से अग्रेजी के अर्थ आदि पूछा करते थे। बचपन व बाल्यकाल भी तेजपूर में बीता जहां अंग्रेजी राज के विरुद्ध स्वतंन्त्रता संग्राम का बोलबाला था। अतः आप पर भी स्वतन्त्रता संग्राम का प्रभाव पड़ा। फलतः गांधीवादी विचारधारा से जुड़े। गांधी साहित्य का अध्ययन मनन किया एवं उसी के अनुकूल जिन्दगी भर आचरण करने को सचेष्ट रहे। इसी कारण अन्तिम समय तक सादा रहना, बिना मिर्च मसाले का खाने खाते तथा खादी की पौशाक पहनते हुए उन्हें 50-60 वर्ष हो गए। स्वतन्त्रता संग्राम में वे मूक सेनानी के रुप में कार्य करते थे यथा स्वतन्त्रता सेनानियों को घर की खबर पहुंचाना, घर पर यथासंभव सहायता करना तथा खादी बेचना आदि। कांग्रेस अधिवेशनों में प्रायः कर भाग लिया करते थे। वे कुशल , निर्लोभी तथा भविष्य दृष्टा व्यवसायी थे। कुशल व्यवसायी की दृष्टि से उन्होेंने अपने जीवन में कई जगह व्यवसाय खोले एवं उनका संचालन दूर बैठे ही किया एवं आपके आदेशों के अनुसार काम करने वाले कार्य कार्यकर्ता सफल ही रहे। निर्लोभी व्यवसायी इस दृष्टि से थे कि वे व्यवसाय में सभी कार्यकर्ताओं की भागीदार मानते थे और इसी कारण वे वर्ष के अंत में लाभ के हिसाब से सभी कार्यकर्ताओं में उनकी तनख्वाह के अलावा कुछ न कुछ दिया करते थे। भविष्य दृष्टा व्यवसायी तो इसलिए कहा जा सकता है कि वस्तुओं का संग्रह करना न करना वे दूर बैठे ही आदेश दिया करते थे और प्रायः उनका सोच ठीक निकलता था। सवत् 1999 में दादाजी श्री हजारीमलजी के देहावसान के समय दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था और आसाम बंगाल से व्यवसायी लोग पलायन कर रहे थे उस समय वे अपने पैतृक व्यवसाय को स्थिर रखने तेजपुर गए। यूं सवत् 2000 से उनका शरीर रोगाक्रांत रहने लगा तो वे अधिकतर राजस्थान के बीकानेर राज्य के अपने पैतृक गांव दियातरा में ही अधिक रहने लगे। यहां उन्होंने निम्न प्रवृतियों को चालू किया। सामाजिक सुधार हेतू स्त्री शिक्षा, शिक्षा के लिए स्कूल,भवन निर्माण व परदा पर्था का उन्मूलन आदि कार्यों में सक्रिय भाग लिया। राजनैतिक क्षेत्र में स्वयं पंच, सरपंच, प्रधान बनकर पंचायत समिति क्षेत्रों में कार्य किया। गौभक्त गायों-बच्छड़ो की नस्ल सुधारकर उन्हें बूचड़ खानों में जाने से बचाने के लिए ठोस काम तथा दुष्काल के समय सस्ते चारे दाने के डिपो खुलवाकर व खोलकर सक्रिय भाग लिया। तथा उनके प्रयास से गायों के दो बड़े कैम्प व श्री राजीव गांधी द्वारा उनके प्रयास से ही घास का दाम पश्चिमी राजस्थान में 40 रुपये प्रति क्विंटल तक किए गए। उनका प्रयास बीसवीं सदी में ही केन्द्र सरकार द्वारा चारा बैंक बनाने का था। जिसकी लागत उस समय 500 करोड़ रुपये थी जो आज 5000 हजार करोड़ हो गई है तथा जो जरुरी भी हो गई है। सर्वोदयी कार्य खादी संस्थाओं के कमेटियों में भाग लेकर ढध्विदजझढविदज ंिबमत्रष्डंदहंसष् ेप्रमत्रष्4ष्झजगह-जगह ऊन कताई के केन्द्र खुलवाया। भूदान करना कराना एवं सर्वोदयी विचारों का प्रचार प्रसार। आयुर्वेदीय औषधियों का सेवन - सवत् 1997 से लेकर सवत् 2052 तक हर बीमारी में स्वयं को आयुर्वेदीय औषधि का सेवन किया। कृषि एवं जल व्यवस्था- आपने आदर्श खेती के लिए स्वयं जमीने खरीद कर अपनी देखरेख में उन्नत बीजों से आधुनिक एवं आधुनिक एवं वैज्ञानिक वैज्ञानिक वैज्ञानिक -सजयंग से कम पानी से खेती का विकास किया। आप खेती में इतने माहिर थे कि एक इंच जमीन बिना बोए नहीं रखते । उनकी देखरेख में कई पानी के कुएं पीने के लिए बनाए ढध्विदजझढविदज ंिबमत्रष्डंदहंसष् ेप्रमत्रष्4ष्झ। तथा खेती के लिए मगरा क्षेत्र में नई तकनीक के कुए भी खुदवाए तथा खेतों की मेड़बंदी करवाई। उनके ही प्रयास से आज ओसवाल समाज में जमीन के प्रति पुनः लगाव उत्पन्न हुआ है। आपने भारत के हिन्दु तीर्थो में केदारनाथ, बद्री, पुरी, द्वारका, रामेश्वरम् आदि सभी प्रमुख तीर्थांे की यात्रा की तथा पालीतणा आदि जैन तीर्थों की भी यात्रा की। तीर्थयात्राओं में आपके साथ छापर के मोटारामजी ब्राह्मण प्रायः साथ रहते थे। आपकी शादी जेठा देवी बैद पुत्री श्री रावतमलजी बैद से हुआ। आपके पुत्र-पुत्रियां दो-दो हैं जो क्रमशः भंवरलाल, मीना, फूसराज, पुष्पा हैं। आपका देहावसान सं. 2052 के पौष बदी 10 दिनांक 18 दिसम्बर 1995 को गंगाशहर में हुआ। दाह संस्कार दिनांक 19 दिसम्बर 1999 को गांव दियातरा में हुआ। |
जेठा देवी | |
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जेठा देवी श्री रावतमल बैद की सुपुत्री का जन्म सन् 1915 में हुआ। आप पढ़ी लिखी न होते हुए भी शिक्षित महिला जैसी है। अतिथि सत्कार तो आपका सराहनीय ही नहीं देखते ही बनता है। अपना अतिथि दूसरे का अतिथि बने यह आपको गंवारा नहीं होता। आलस्य नाम की वस्तु तो आपकी रगो में है नहीं। लगातार श्रम में मशगूल रहना ही श्रेयस्कर मानती है एवं उसी तरह का आचरण करती है। अभी 86 साल की उम्र में भी अपना कार्य स्वयं करती ही है पर परिवार के लिए रात दिन जुटी रहती है। आपके पुत्र-पुत्रियां क्रमशः भंवरलाल, मीना, फूसराज, पुष्पा हैं- |
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